छत्रपति संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj): स्वराज के रक्षक
छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) के बाद मराठा साम्राज्य की बागडोर संभालने वाले छत्रपति संभाजी महाराज एक महान शासक और वीर योद्धा थे। आज हम उन्हीं के जीवन और शौर्य को याद करते हैं.
वीर बालक से वीर छत्रपति
छत्रपति संभाजी का जन्म 14 मई, 1657 को हुआ था। बचपन से ही उन्हें युद्ध कौशल और रणनीति की शिक्षा दी गई। महज नौ साल की उम्र में वे अपने पिता शिवाजी महाराज के साथ आगरा के अभियान पर भी गए थे. युवावस्था में आते-आते संभाजी एक कुशल योद्धा बन चुके थे.
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बीजापुर और गोलकुंडा पर विजय
छत्रपति संभाजी ने मुगलों के साथ युद्ध तो लड़े ही, साथ ही उन्होंने दक्खिन के दो बड़े सल्तनत- बीजापुर और गोलकुंडा को भी हराया. इससे मराठा साम्राज्य का काफी विस्तार हुआ और मुगलों को भी एक बड़ा झटका लगा.
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औरंगजेब से लोहा लेना
मुगल बादशाह औरंगजेब दक्षिण भारत को जीतने का सपना देखता था. छत्रपति संभाजी उसके रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट थे. औरंगजेब ने संभाजी को पकड़ने के लिए कई चालें चलीं. आखिरकार संभाजी को मुगलों के धोखे का शिकार होना पड़ा और उन्हें बंदी बना लिया गया.
अडिग निष्ठा और शहादत
औरंगजेब ने संभाजी को धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच और यातना दोनों का इस्तेमाल किया, लेकिन संभाजी अडिग रहे. उन्होंने अपने धर्म और स्वराज के लिए अपना बलिदान दे दिया. 11 मार्च, 1689 को उन्हें औरंगजेब के आदेश पर शहीद कर दिया गया.
धर्मवीर और प्रेरणा स्रोत
छत्रपति संभाजी महाराज को धर्मवीर के रूप में जाना जाता है. उन्होंने हमें सिखाया कि अपने धर्म और राष्ट्र के लिए कभी भी झुकना नहीं चाहिए. उनका साहस और बलिदान आज भी भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है.