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Konark Sun Temple
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कोणार्क सूर्य मंदिर: सूर्यदेव के रथ की अविस्मरणीय यात्रा

कोणार्क सूर्य मंदिर: सूर्यदेव के रथ की अविस्मरणीय यात्रा (Konark Sun Temple: The Unforgettable Journey of the Sun God’s Chariot)

ओडिशा के पूर्वी तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple), सूर्य देव के लिए बनाए गए सबसे शानदार मंदिरों में से एक है। अपनी अविश्वसनीय वास्तुकला के लिए दुनिया भर में विख्यात, यह मंदिर 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा वंश(Ganga Dynasty) के राजा नरसिंहदेव प्रथम की देन है।

सम्राट नरसिंहदेव की महत्वाकांक्षा (The Ambition of King Narasimhadeva):

इतिहासकारों का मानना है कि राजा नरसिंहदेव सूर्य के परम भक्त थे। सूर्य की शक्ति और जीवनदायिनी किरणों से प्रभावित होकर उन्होंने सूर्यदेव को समर्पित एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी के आसपास शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में लगभग 12 साल लगे। दुर्भाग्य से, मंदिर अधूरा रह गया क्योंकि राजा नरसिंहदेव का देहांत हो गया।

वास्तुशिल्प का चमत्कार (A Marvel of Architecture):

कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी रथनुमा संरचना के लिए सबसे ज्यादा पहचाना जाता है। यह मंदिर देवताओं के शिल्पकार, विश्वकर्मा द्वारा निर्मित सूर्य के विशाल रथ का प्रतीक है। 12 विशाल चक्र (wheels) मंदिर के आधार को सुशोभित करते हैं, जो दिन के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सात घोड़े इस रथ को खींचते हुए प्रतीत होते हैं, जो सूर्य के सात किरणों का प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर की बाहरी दीवारें बेहतरीन मूर्तिकला से सजी हैं, जो देवी-देवताओं, रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्यों के दृश्यों, और कामुक कलाकृतियों को दर्शाती हैं। ये मूर्तियां मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को बयां करती हैं।

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सूर्यदेव के दर्शन (Glimpses of the Sun God):

सूर्य मंदिर का डिजाइन सूर्य की शक्ति और उसके ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतीक है। प्राचीन काल में, मंदिर की मुख्य मूर्ति – एक विशाल चतुर्भुज सूर्य देव की प्रतिमा – गर्भगृह में विराजमान थी। सूर्य की किरणें दिन में तीन बार (सुबह, दोपहर और शाम) सीधे गर्भगृह में प्रवेश करती थीं, जिससे यह प्रतीत होता था मानो सूर्य देव स्वयं दर्शन दे रहे हों।

समय के थपेड़ों का सामना (Facing the Ravages of Time):

दुर्भाग्य से, सदियों से प्राकृतिक आपदाओं और विनाश का सामना करना पड़ा है। मंदिर का मुख्य शिखर जो सूर्य के रथ की छत्र जैसा था, नष्ट हो गया है। इसके बावजूद, मंदिर के शेष भाग अपनी भव्यता का प्रदर्शन करते हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर को 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) लगातार मंदिर के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य कर रहा है।

एक अविस्मरणीय अनुभव (An Unforgettable Experience):

कोणार्क सूर्य मंदिर कला, इतिहास और धर्म का एक संगम है। सूर्योदय के समय मंदिर का दृश्य अविस्मरणीय होता है, जब सूर्य की किरणें मंदिर को सुनहरी रोशनी में नहा देती हैं। यदि आप भारत की समृद्ध संस्कृति और वास्तुकला का अनुभव करना चाहते हैं, तो कोणार्क सूर्य मंदिर आपकी यात्रा सूची में अवश्य शामिल होना चाहिए।

कैसे पहुंचे ?

कोणार्क सूर्य मंदिर तक पहुँचने के तरीके कुछ ऐसे है :

निकटतम एयरपोर्ट : बीजू पटनायक एयरपोर्ट

निकटतम रेलवे स्टेशन : भूबनेश्वर या पूरी

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