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गोतमेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्त्व

गोतमेश्वर मंदिर का इतिहास और महत्त्व (History and importance of Gotameshwar Temple)

गोतमेश्वर मंदिर (Gotameshwar Temple) राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक प्रमुख हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। इसकी कहानी और इतिहास भी बहुत ही रोमांचक हैं।

मंदिर का इतिहास

गोतमेश्वर मंदिर का निर्माण करीब 12वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर भगवान शिव के प्रसिद्ध अभिन्न अंग (लिंग) के लिए जाना जाता है, जिसे गोतमेश्वर शिवलिंग के रूप में जाना जाता है। इसका नाम गोतमेश्वर भगवान शिव के भक्त गोतम ऋषि के नाम पर रखा गया है।

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पौराणिक कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, गोतम ऋषि ने भगवान शिव की पूजा के लिए एक शिवलिंग स्थापित किया था। ऋषि ने पूरे ध्यान और भक्ति से शिवलिंग की पूजा की और उनकी आराधना की। शिव भक्ति में लिप्त होकर उन्होंने ऋषि के तपस्या को स्वीकार कर लिया। इस घटना के बाद से वह स्थान ‘गोतमेश्वर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

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हमले की घटना

कहते हैं कि एक बार मुगल सेना ने गोतमेश्वर मंदिर पर हमला किया। उनका उद्देश्य मंदिर को नष्ट करना और वहां के धार्मिक महत्त्व को समाप्त करना था। हमलावरों ने मंदिर की मूर्तियों को तोड़ने और मंदिर की संपत्ति को लूटने का प्रयास किया।

कहा जाता है कि जब आक्रमणकारियों ने मंदिर पर हमला किया, तो भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से मंदिर की रक्षा की। जैसे ही हमलावर मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करते, मंदिर के चारों ओर एक दिव्य प्रकाश मंडल उत्पन्न हो गया, जिसने हमलावरों को अंधा कर दिया। भयभीत होकर वे भाग खड़े हुए और मंदिर को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सके।

मंदिर की विशेषताएँ

गोतमेश्वर मंदिर का विशेष रूप से उल्लेखनीय स्थान है जहां स्थानीय लोग और पर्यटक भगवान शिव की आराधना करते हैं। इसकी प्राचीन वास्तुकला और शिल्पकला भी देखने लायक है। मंदिर के पास का प्राकृतिक वातावरण भी शांति और ध्यान के लिए अनुकूल है।

धार्मिक महत्त्व

गोतमेश्वर मंदिर महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान भगवान शिव के भक्तों के बीच भारी भीड़ आती है। यहां की धार्मिक और सांस्कृतिक प्राथमिकताएं हमेशा से ही लोगों के मनोरंजन और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं।

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