भीलवाड़ा का इतिहास (History of Bhilwara)
राजस्थान की वस्त्र नगरी है, भीलवाड़ा (Bhilwara)। इसका इतिहास(History) लगभग 900 साल पुराना है | हालाँकि यहाँ कोई किला नहीं है लेकिन फिर भी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है |
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प्रारंभिक इतिहास:
पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, भीलवाड़ा क्षेत्र में मानव सभ्यता का प्रमाण पाषाण युग से मिलता है। हालांकि, शहर की स्थापना का सटीक समय अज्ञात है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 11वीं शताब्दी के मध्य में भील जनजाति द्वारा निर्मित जटाऊ शिव मंदिर के आसपास वर्तमान भीलवाड़ा शहर का विकास हुआ।
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मुगल काल:
मुगल शासन के दौरान, भीलवाड़ा मेवाड़ राज्य के अंतर्गत शाहपुरा रियासत का हिस्सा था। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण के समय मुगलों का सैन्य शिविर मंडल (भीलवाड़ा के पास) में था। इसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
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नामकरण की कहानियां:
भीलवाड़ा के नामकरण के संबंध में दो प्रमुख कहानियां प्रचलित हैं।
- एक के अनुसार, मेवाड़ राज्य में यहां टकसाल हुआ करती थी, जहां ‘भीलादी’ नाम के सिक्के ढाले जाते थे। इसी सिक्के के नाम से जिले का नाम पड़ा।
- दूसरी कहानी बताती है कि भील जनजाति ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ महाराणा प्रताप की सहायता की थी। चूंकि इस क्षेत्र में भील जनजाति निवास करती थी, इसलिए इसे ‘भील + बड़ा (भील का क्षेत्र)’ यानी भीलवाड़ा के नाम से जाना जाने लगा।
आधुनिक इतिहास:
1858 में, भीलवाड़ा के सनागनेर गांव में क्रांतिकारी तात्या टोपे और अंग्रेजों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था। 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, भीलवाड़ा को उदयपुर रियासत से अलग कर राजस्थान राज्य में शामिल कर लिया गया।
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औद्योगिक विकास:
1961 में भारत के पहले सिंथेटिक यार्न निर्माण इकाई की स्थापना के साथ, भीलवाड़ा ने ‘भारत का वस्त्र शहर’ के रूप में अपनी ख्याति अर्जित की। आज, यह शहर कपड़ा उद्योग का एक प्रमुख केंद्र है।
भीलवाड़ा का इतिहास गौरवशाली अतीत और उज्ज्वल भविष्य का संगम है। यह शहर सांस्कृतिक विरासत, वीरता की गाथाओं और औद्योगिक प्रगति का प्रतीक है।