राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है, मांडलगढ़ किला (Mandalgarh Fort History) | सदियों से, इसने कई साम्राज्यों के शासन को देखा है और वीरता की गाथाओं को अपने भीतर समेटे हुए है | आइए, इस ऐतिहासिक किले के अतीत की यात्रा करें :
प्रारंभिक इतिहास:
- वीर विनोद के अनुसार, मांडलगढ़ किले का निर्माण मंडिया भील ने करवाया था। माना जाता है कि यह घटना 12वीं शताब्दी के आसपास हुई थी।
- किले के भीतर पाए जाने वाले मंदिर के शिलालेख के अनुसार, इसका निर्माण विक्रम संवत 1619 में हुआ था।
- यह किला रणथंभौर के चांदा राजपूत शासकों के अधीन रहा था।
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शासकों का बदलता दरबार:
- 15वीं शताब्दी के मध्य में मालवा के महमूद खिलजी ने दो बार मांडलगढ़ को जीता था | इसके बाद, यह मेवाड़ के राणाओं और मुगल सम्राटों के बीच शासन बदलता रहा |
- 1660 में, महाराणा राज सिंह ने किले को वापस जीत लिया था |
- 1700 में, इसे औरंगजेब ने अपने अधीन कर लिया, परन्तु 1706 में महाराणा अमर सिंह ने इसे हराकर पुनः मेवाड़ का हिस्सा बना लिया |
- किला अंततः मेवाड़ राज्य के साथ ही स्वतंत्र भारत का हिस्सा बना |
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संरचना और विशेषताएं:
- मांडलगढ़ का किला (Mandalgarh Fort) उत्तर-पश्चिम में लगभग आधा मील लंबा है और इसमें एक निचली प्राचीर और बुर्जों से घिरी चोटी है |
- किले के भीतर प्राचीन शिव मंदिर, जलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इसकी स्थापना 1619 ईस्वी में हुई थी |
- किले में एक दरबार हॉल और हथियारों का संग्रह भी है जो उस समय के जीवन शैली की झलक दिखाते हैं |
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वर्तमान स्थिति:
- आज, मांडलगढ़ दुर्ग एक संरक्षित स्मारक के रूप में खड़ा है | हालांकि, अभी किले के जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है |
- पर्यटकों के लिए किला खुला है और वे इसके ऐतिहासिक महत्व और वास्तुकला का अनुभव कर सकते हैं |
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कुछ रोचक बातें:
- माना जाता है कि किले में अभी भी परस पत्थर मौजूद है, जो लोहे को सोने में बदल सकता है |
- स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस किले को जीतने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहा |
- मांडलगढ़ दुर्ग राजस्थान के इतिहास और वीरता की गाथाओं को अपने में समेटे हुए है। यह स्थान इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है |
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