महाराणा प्रताप: स्वतंत्रता के प्रतीक (Maharana Pratap:A Symbol of Freedom)
राजस्थान के इतिहास में वीरता और त्याग की गाथा सुनाने वाले महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। मुगलों के सामने न झुकने वाले इस महान योद्धा ने अपने जीवनकाल में स्वतंत्रता की ज्वाला को जगाए रखा. आइए, आज हम उनके संघर्ष और बलिदान को याद करें।
मुगल साम्राज्य के विरोध में दृढ़ संकल्प
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को हुआ था। वे मेवाड़ के शासक राणा उदय सिंह के पुत्र थे। उस समय भारत में मुगल साम्राज्य का बोलबाला था। मुगल बादशाह अकबर ने चित्तोड़ दुर्ग को जीत लिया था। राणा उदय सिंह ने अकबर के अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अपना किला छोड़कर जंगलों में रहने लगे। महाराणा प्रताप ने भी अपने पिता के इस फैसले का समर्थन किया। वे मुगलों के आगे कभी भी झुकने को तैयार नहीं थे।
हल्दीघाटी का युद्ध: शौर्य की परीक्षा
अपने आदर्शों पर अडिग रहने के कारण महाराणा प्रताप को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सन 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में उनका सामना अकबर की विशाल सेना से हुआ।
गुरिल्ला युद्ध से मुगलों को चुनौती
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी। उन्होंने मेवाड़ को वापस पाने के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई। पहाड़ों और जंगलों का सहारा लेकर वे मुगलों पर अचानक हमले करते थे और उन्हें काफी परेशान करते थे। उन्होंने कभी भी मेवाड़ को स्वतंत्र कराने की कोशिशें नहीं छोड़ीं।
स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाला सूर्य
उन्होंने मुगलों को यह स्पष्ट कर दिया कि मेवाड़ की आज़ादी की ज्वाला को बुझाया नहीं जा सकता। उनका संघर्ष भारत के इतिहास में स्वतंत्रता की लड़ाई का एक प्रेरणा स्रोत बन गया।
आज भी प्रेरणा का स्रोत
19 जनवरी, 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हो गया। लेकिन उनका वीरता और त्याग का इतिहास आज भी हमें प्रेरित करता है। वे हमें सिखाते हैं कि क्रूरता के आगे कभी झुकना नहीं चाहिए और अपने देश की आज़ादी के लिए हर मुश्किल का सामना करना चाहिए।